उप चुनाव तय करेगा रालोपा, बीएपी का भी भविष्य, कईयों तय होंगे कद
RNE Special.
राजस्थान में 7 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव के लिए मतदान हो गया। इनके चुनाव परिणाम 23 नवम्बर को सामने आयेंगे। ये चुनाव परिणाम जहां एक तरफ भाजपा और कांग्रेस के कई नेताओं का कद तय करेंगे वहीं दोनों क्षेत्रीय दलों, रालोपा व बीएपी के भविष्य का भी निर्धारण करेगा। इस कारण इस बार के उप चुनाव परिणामों पर पूरे प्रदेश की निगाहें टिकी है। दलों के भीतर भी कई तरह की बिसात बिछ रही है ताकि परिणामों के आधार पर गुटीय राजनीति को धार दी जा सके।
इस उप चुनाव के परिणामों का सबसे अधिक असर क्षेत्रीय दलों पर पड़ेगा और कालांतर में ये राष्ट्रीय दलों के लिए अलग धरातल तैयार करेगा। क्योंकि इस बार चुनाव में रालोपा व बीएपी ने किसी भी राष्ट्रीय दल से समझौता नहीं किया। जबकि दोनों ही राष्ट्रीय दल समझौते की भूमि तैयार कर रहे थे। कांग्रेस को इन क्षेत्रीय दलों से समझौते की बहुत उम्मीद थी, मगर उसे सबसे ज्यादा निराशा हाथ लगी।
बीएपी को कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव व उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में आउट ऑफ वे जाकर समर्थन दिया था। बांसवाड़ा लोकसभा सीट बीएपी के राजकुमार रोत ने जीती भी। वहां कांग्रेस का उम्मीदवार नहीं था। रोत को इंडिया गठबंधन में लेने की कोशिश भी थी। ठीक इसी तरह विधानसभा चुनाव में भी बीएपी के सामने उम्मीदवार नहीं उतारा।
मगर उप चुनाव में बीएपी ने अकेले लड़ने का ऐलान कर चौरासी व सलूम्बर में अपने उम्मीदवार उतार दिए। हारकर कांग्रेस ने भी यहां उम्मीदवार उतारे। पिछले दो चुनाव से बीएपी का बांसवाड़ा-डूंगरपुर में तेजी से प्रभाव बढ़ा है। यदि चौरासी से बीएपी चुनाव जीत जाती है तो पार्टी का कद बरकरार रहेगा।
सलूम्बर जीतने पर तो उसे बड़ा विस्तार मिल जायेगा। यदि दोनों सीटों से बीएपी चुनाव नहीं जीत पाती है तो उसका विस्तार रुक जायेगा और आदिवासी बेल्ट में प्रभाव भी कम हो जायेगा।
नागौर लोकसभा सीट रालोपा को इंडिया गठबंधन के कोटे से मिली थी और हनुमान बेनीवाल चुनाव भी जीत गये। मगर उप चुनाव में अकेले मैदान में उतरे। समझौता नहीं किया। खींवसर विधानसभा सीट पर अब रालोपा का पूरा वजूद दांव पर लगा है।
यदि रालोपा यहां जीत जाती है तो विधानसभा में उनके दल की उपस्थिति बनी रहेगी, नहीं तो कोई विधायक नहीं रहेगा। हार – जीत का असर हनुमान बेनीवाल पर भी पड़ेगा।
कांग्रेस में इस बार अधिकतर बड़े नेता अन्य राज्यों में सक्रिय थे और राज्य के उप चुनाव की पूरी कमान पीसीसी चीफ गोविंद डोटासरा के पास रही। इस कारण परिणामों का डोटासरा पर जरूर असर डालेगा।
अशोक गहलोत, सचिन पायलट व टीकाराम जुली तो कुछ सीटों तक ही सीमित रहे। रामगढ़ सीट कांग्रेस जीती तो जुली व भंवर जितेंद्र सिंह को फायदा मिलेगा। उसी तरह हरीश मीणा, मुरारीलाल मीणा व ब्रजेन्द्र ओला के लिए परिणाम महत्त्वपूर्ण रहेंगे।
भाजपा की 7 में से केवल 1 सीट है, उसे अधिक सफलता की उम्मीद है। इस बार के चुनाव की कमान पूरी तरह से मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा व मदन राठौड़ के पास थी। यदि सफलता अधिक मिलती है तो दोनों नेताओं को स्थायित्व मिलेगा।
इसके साथ ही जिन नेताओं ने चुनाव में अलग अलग सीट का जिम्मा संभाल रखा था, उन नेताओं पर भी परिणाम असर डालेगा। चुनाव परिणाम से ये भी तय होगा कि किरोड़ीलाल मीणा का कद बढ़ेगा या नहीं। उनके इस्तीफे का निर्णय भी परिणामों पर निर्भर करेगा। कुल मिलाकर 7 सीटों के परिणाम का सभी दलों पर व्यापक असर पड़ेगा, नेताओं के कद भी प्रभावित होंगे।
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में